कैसा है मानव स्वभाव
अमूर्त को
कर देता है मूर्त
ज्ञान से बना दिए शास्त्र
समय को बना दिया घडी
अशरीर की घड़ ली मूर्तियाँ
अपनी सुविधा हेतु
उद्देश्य गलत नहीं
साध्य को पाने
साधन जो चाहिए
किन्तु मान बैठा वो
साधन को साध्य........
(2)
इन्द्रियां पहचानती है
स्थूल को
जो दीख सकता है
सामान्यतः
किन्तु उसे भी नहीं
जाना जा सकता पूर्णतः
एवम सूक्ष्म रूप :
उसे तो जानने और पहचानने की
क्षमता इन्द्रियों को नहीं
अदृश्य को कैसे देखे मानव ?
किन्तु नहीं देख पाना
अस्तित्व का नहीं होना तो नहीं…………
(3)
अधिकांश निर्णय होते हैं हमारे
आधारित मूर्त पर
क्यों ना हम समग्र निर्णय की
प्रणाली को अपनाएं
मूर्त को भी विचार करें
अमूर्त पर भी सोचें
स्थूल को भी जाने
सूक्ष्म को भी मानें
शारीर को भी स्वीकारे
आत्मा के अस्तित्व को भी
अंगीकार करें
जीवन की समग्र एवम् संपूर्ण
स्वीकृति ही तो
आध्यात्म है............
Wednesday, July 15, 2009
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