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Sunday, September 28, 2008

यादों के साये...(नायेदा)

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तनहा वो जब भी चमन में जाता होगा,
तसव्वुर में उसके क्या क्या आता होगा.

उसको निस्बत है हक़ीक ही से महज,
खयालों में ख़्वाबों को भी लाता होगा.

माना कि मसरूफ रहा करता है वहां,
नक्ह्तें फुर्सत की सीने से लगाता होगा।

हंस के महफ़िल गुंजाता है तो क्या,
रात कि तन्हाई में वो सिसकता होगा.

सपनों को सजाता है मेरी सूरत से ,
आँख खुले मेरा ख़याल आता होगा.

दूर मुल्क और गैरों में थिरकना क्या,
साज-ए-दिल मेरे ही तराने गाता होगा.

लिखते रहते हैं नज्में उसकी यादों में
दिल पे वो यादों के साये बसाता होगा.

Tassvur=imagination. Nisbat=relation. Haqaik=reality. Khal-o-khad=Cheek n mole
Masruf=busy. Nikahten=fragrance.

तसव्वुर=कल्पना, निस्बत=सम्बन्ध, हक़ीक=वास्तविकता, मसरूफ=व्यस्त,  नकहतें =सुगंधें.