दिया जाये जो कर्त्तव्य भाव से
उचित समय, उपयुक्त स्थान
पात्र सुपात्र चुनना है
प्रतिफल की नहीं आस है मुझको
दान सात्विक कहलाता है..........
प्रतिफल की आस लिए है
भविष्य की आकांक्षा है
क्लेश होता जिस दान से
वह दान राजसिक कहलाता है ...........
गलत जगह हो वक़्त गलत हो
पात्र कुपात्र हो जिस में
दिया जो बिना समारोह के
तिरस्कार जिसमें हो शामिल
ऐसा दान मित्रों मेरे
दान तामसिक कहलाता है .........
(गीता में तीन प्रकार के दान बताएं हैं (अध्याय १६ श्लोक २०,२१ और २२ ). सात्विक दान अपनाना शुभ है , राजसिक दान हम लोग करते हैं किन्तु क्लेश ही पातें हैं प्रतिदान में. आजकल तामसिक दान का बोलबाला है जो सिवा दुखों और रूहानी गिरावट के कुछ नहीं हासिल कराता.. थोडा सोचें तो हमें तीनो प्रकार के दानों के भेद समझ में आ जायेंगे और हम निसंदेह सात्विक दान की बात को अपनाएंगे.)
Saturday, June 27, 2009
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